Monday, July 23, 2007

दुनिया किसकी मुट्ठी में?

एक थे सेसिल रोड्स. अफ्रीका में हीरे की खानों को बड़ी युक्ति से उन्होंने कब्जा कर लिया था. उनके काम को देखते हुए एक देश का नाम रोडेशिया रखा गया था जो आजकल जिम्बाबवे के नाम से जाना जाता है. आप लोगों ने अगर हीरा कंपनी डी-बियर्स का नाम सुना हो तो यह भी जान लीजिए कि इस डी-बियर्स कंसालिडेटेड माईन्स एण्ड गोल्डफील्ड की स्थापना सेसिल रोड्स ने ही की थी. 1890 के दशक में रोड्स अमीरों के अमीर थे. उस समय उनकी आमदनी 10 लाख डॉलर यानि एक मिलियन डॉलर सालाना थी जो कि आज भी किसी अमरीकी के लिए बहुत बड़ी रकम होती है. रोड्स अमीरी के लिए पैसे नहीं कमाता था. उसका एक सपना था.
उसका सपना था कि हमें कुछ ऐसी रणनीति विकसित करनी चाहिए कि दुनिया पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थायी रूप से कायम हो सके. उसका मानना था कि इसके लिए हमें बहुत लंबी रणनीति के तहत काम करना होगा. और उसने यह किया भी.उसने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति देकर लोगों को पढ़ने के लिए आमंत्रित करना शुरू किया. उसका मानना था कि दुनिया में कहीं भी प्रतिभा हो तो उसका उपयोग साम्राज्य विस्तार में करना चाहिए. उसने एक राउण्ड टेबल की स्थापना की थी जो आज भी काम कर रही है. यह राउण्ड टेबल दुनिया के वर्तमान की समीक्षा और भविष्य को तय करती है. आज दुनिया की तथाकथित बड़ी-बड़ी संस्थाएं जो दुनिया पर नियंत्रित कर रही हैं उनमें से अधिकांश राउण्ड टेबल के दिमाग की उपज हैं. राउण्ड टेबल की स्थापना के बाद रॉथचाईल्ड कारपोरेशन, कार्नेगी युनाईटेड किंगडम ट्रस्ट, रॉकफेलर फाउण्डेशन, फोर्ड फाउण्डेशन, जे पी मार्गन, हिटनी परिवार, लेजार्ड ब्रदर्स आदि महत्वपूर्ण घराने इसके सदस्य बनते चले गये. अमेरिका की प्रितिष्ठित येल यूनिवर्सीटी में एक विभाग था स्कल एण्ड बोन सोसायटी. यह सोसायटी गुप्त रूप से राउण्ड टेबल के लिए काम करती थी.रोड्स तो कब के मर गये लेकिन राउण्ड टेबल जिन्दा है.
राउण्ड टेबल की कारगुजारियों और योजनाओं पर एक किताब है जिसका नाम है- द प्रिजन. इस किताब में राउण्ड टेबल का पूरा इतिहास और आगे की कारगुजारियों के बारे में विस्तार से लिखा गया है. किताब बताती है कि राउण्ड टेबल दुनिया को मुट्ठी में करने के लिए युद्ध को आवश्यक हथियार मानती है. इसकी शुरूआत 1899 से होती है जब दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध की शुरूआत हुई थी. 13 साल चले इस युद्ध में अफ्रीका तबाह हुआ और वहां की प्राकृतिक संपदा अंग्रेजों के हाथ में चली गयी. वहां के लोग अपने ही देश में गुलाम बन गये. कुछ-कुछ वैसा ही जैसा हाल में ही इराक में हुआ है. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध की व्यूह-रचना में भी इसी राउण्ड टेबल की सोच काम कर रही थी. आज राउण्ड टेबल कोई संस्था नहीं है, यह एक सोच है जो संस्थाओं को जन्म देती है. इसने बहुत सी संस्थाओं को जन्म दिया है. दुनिया की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 26 जून 1946 को जिस अधिनियम के तहत की गयी थी वह अधिनियम गोलमेज के काउंसिल आफ फारेन रिलेशन्स के तहत आता था. गोलमेज की मंशा साफ थी कि दुनिया पर नियंत्रण करना है तो ऐसी कोई संस्था होनी चाहिए जो छद्म आजादी के नाम पर हमारी योजनाओं को पूरी दुनिया में लागू करवा सके.द प्रिजन में विलियम एच मैकहनी लिखते हैं - संयुक्त राष्ट्र की योजना पूरी तरह वैश्विक नियंत्रण की है. इसके लिए यहां साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों का इस्तेमाल किया जाता है. यह विश्व सरकार जीवन के हर क्षेत्र में नियंत्रण के लिए जनसंख्या नियंत्रण, विज्ञान और तकनीकि, स्वास्थ्य, शस्त्र और सैनिक नियंत्रण, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों के लिए नीतियां बनाती और लागू करवाती है.
गोलमेज समुदाय के लोग संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से दुनिया में यह मानसिकता विकसित करना चाहते हैं कि देश के लोगों का अपने शासन-प्रशासन से धीरे-धीरे विश्वास खत्म हो जाए. (इस बात को ठीक से समझने के लिए आप संयुक्त राष्ट्र शांति सेना, संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य और शिक्षा मिशन का उदाहरण ले सकते हैं). एक बार लोगों का स्थानीय लोक प्रशासन से विश्वास उठ जाएगा तो दुनिया में एक केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय अर्थतंत्र के बारे में लोगों का विरोध समाप्त हो जाएगा.इसी सोच को पुख्ता करने के लिए विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश, एमनेस्टी इंटरनेशनल, वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन, यूनेस्को, यूएनडीपी, मानवाधिकार से जुड़े संगठन, गैर-सरकारी संगठन आदि बनाये गये हैं. आज भारत में ही विकास की कई योजनाओं पर काम करनेवाली संस्थाओं को फोर्ड फाउण्डेशन पैसा देता है. यह फोर्ड फाउण्डेशन गोलमेज समुदाय का सक्रिय सदस्य है. इस गोलमेज समुदाय का हाल के दिनों में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय था गैट की स्थापना. गोलमेज समुदाय की एक संस्था बिल्डबर्ग की एक बैठक 1991 में वाडेन, जर्मनी में हुई थी. इस बैठक में डेविड रॉकफेलर, कई प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ, उद्योगपति, एक अमेरिकी प्रांत के गवर्नर बिल क्लिंटन, तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश, नीदरलैण्ड की रानी बीट्रीक्स, स्पेन की रानी सोफिया, ब्रिटेन की ओर से जॉन स्मिथ आदि मौजूद थे. इसी बैठक में जार्ज बुश ने इराक के खिलाफ युद्ध का खुलासा किया था. इसके बाद निर्णय हुआ कि युद्ध के बाद वहां संयुक्त राष्ट्र सेना नियुक्त कर दी जाएगी. वहां उपस्थित सभी लोगों ने जार्ज बुश सीनियर की योजना को सही ठहराया और संयुक्त राष्ट्र से बात करने का प्रस्ताव किया. इस बैठक में और नामों के अलावा एक नाम पीटर डी सदरलैण्ड का भी था. सदरलैण्ड इस बैठक के बाद गैट के डायरेक्टर जनरल बन गये. बिल्डरबर्ग की अगली बैठक 1994 में फिनलैण्ड में हुई. गैट की सफलता को नये आयाम देने के लिए व्यापार को और प्रभावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति पर काम शुरू हुआ. 1995 में स्विटजरलैण्ड में कई गोपनीय बैठकों के बाद आखिरकार वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन का चेहरा दुनिया के सामने आ गया. आज भारत में जिस डब्ल्यूटीओ का गुणगान किया जाता है और जिसकी शर्तों की दुहाई देकर व्यापारिक नीतियों को बड़े पैमाने पर उलट-पुलट दिया गया उसके जन्म की कहानी यह है कि वह दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपनी मुट्ठी में लेने के लिए अस्तित्व में आया था.द प्रिजन में मैकहनी लिखते हैं - आईएमएफ की यह जिम्मेदारी है कि वह अफ्रीका, एशिया और दुनिया के दूसरे विकासशील देशों को "सभ्य" समाज में शामिल करने के लिए धन का वितरण करे.
इसी रणनीति पर काम करते हुए आईएमएफ ने पूरी दुनिया के गरीब मुल्कों में घूसखोरी का सहारा लेकर वहां राजनीतिज्ञों को खरीद लिया. उसने ऐसी नीतियां बनवाने में कामयाबी हासिल कर ली कि गरीब मुल्क अपनी जमीन पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आने दें. यहां खेती की ऐसी विधि विकसित की जा रही है जो नकद आमदनी देनेवाली हो. इस पैसे से वह अपने लिए जरूरत के सभी सामान अमीर मुल्कों से आयात करेगा. इससे दोहरा फायदा है. गरीब देश केवल अमीर मुल्कों के लिए निर्यातक बनकर रह जाएंगे और इस निर्यात से जो पैसा मिलेगा उससे फिर वे उन्हीं अमीर मुल्कों से जरूरत का सामान खरीदेंगे. इस तरह अमीर मुल्क दोनों ओर से फायदे में हैं. वे बड़ी चालाकी से दुनिया की सारी प्राकृतिक संपदा का इस्तेमाल अपने ऐशो-आराम के लिए कर रहे हैं और गरीब मुल्कों पर उनकी संप्रभुता भी कायम है.

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